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दोगुने हो गए रेत के दाम, कारोबारियों ने 8 दिन में 100 करोड़ से ज्यादा कमाए

प्रदेश सरकार ने नर्मदा को बचाने के लिए रेत उत्खनन पर रोक तो लगा दी है, लेकिन वह कालाबाजारियों पर नकेल कस पाने में नाकाम रही है। इसका परिणाम यह रहा कि रेत के दाम दोगुने हो गए। 28 रुपए घनफीट में मिलने वाली रेत अब 56 रुपए में बिक रही है। आठ दिन पहले जो 800 घनफीट भरा रेत का ट्रक 24 से 25 हजार रुपए में मिल रहा था, अब 40 हजार रुपए में मिल रहा है। यानी एक ट्रक की कीमत में सीधे-सीधे 15 हजार रुपए की बढ़ोतरी। इस तरह रेत की कालाबाजारी करने वालों ने 100 करोड़ रु. से ज्यादा की कमाई कर ली है। 

सरकार ने रेत का अवैध भंडारण करने पर जब्ती की कार्रवाई की जिम्मेदारी कलेक्टरों को सौंपी थी, लेकिन अब तक प्रदेश में कहीं भी यह कार्रवाई नहीं हुई है। वैध रूप से रेत भंडारण करने का लाइसेंस जिन ठेकेदारों ने लिया है, उन्होंने बड़ी मात्रा में रेत का भंडारण कर रखा है। इसे राजसात करने का कोई प्रावधान ही नहीं है। रेत की बढ़ी हुई कीमतों और उपलब्धता न होने से रियल एस्टेट से जुड़े कारोबारियों ने अपने प्रोजेक्ट फिलहाल रोक दिए हैं। भोपाल में ही 200 से ज्यादा प्रोजेक्ट अटक गए हैं। 

ये हैं रेत उत्खनन के नियम 
रेत का उत्खनन करने वालों को स्टेट माइनिंग कॉर्पोरेशन ने नर्मदा से लगे 11 जिलों में 84 खदानों को लीज आवंटित की है, जो 8 हैक्टेयर से 15 हैक्टेयर तक की हैं। इन खदानों से 22 मई से रोक लगी हुई है। इससे पहले इन खदानों से निश्चित रॉयल्टी यानी अलग-अलग 250 और 300 रुपए प्रति घन स्क्वायर मीटर के हिसाब से स्टेट माइनिंग कॉर्पोरेशन को देना पड़ रहा था और उन्हें रेत उत्खनन की इजाजत मिली थी। 

लीज निरस्त करने के अधिकार सरकार के पास नहीं 
केंद्र सरकार के खनिज नियमों के हिसाब से बड़ी विसंगति यह है कि जहां भी रेत का अवैध उत्खनन यानी 8 हैक्टेयर की खदान आवंटित हुई है और ठेकेदार ने 50 हैक्टेयर में उत्खनन कर लिया है। ऐसी स्थिति में सिर्फ उस पर दंड लगाए जाने का अधिकार राज्य सरकार को है। लीज निरस्त करने के अधिकार नहीं हैं। इस तरह के मामलों में राज्य सरकार केंद्र को पत्र भी लिख चुकी है। चूंकि एक्ट केंद्र सरकार का है, जिससे संशोधन भी वही करेगी। 

वैध भंडारण कितना ही हो राजसात के प्रावधान नहीं 
रेत का व्यवसाय करने वाले पहले तो अवैध उत्खनन को वैध करवा लेते हैं। इसके बाद उन्होंने सरकार से रेत भंडारण के लाइसेंस लिए हुए हैं। इस स्थिति में सरकार भले ही बाजार में रेत की कमी हो या कीमतें कितनी ही बढ़ जाएं, इस भंडारण को राजसात नहीं कर सकती। सिर्फ अवैध रेत की जब्ती ही की जा सकती है। 
डेढ़ साल की होगी देरी प्रोजेक्ट पूरे होने में 
इधर, रेत की कमी से भोपाल शहर में ही 200 प्रोजेक्ट अटक गए हैं। नर्मदा में रेत का उत्खनन दिसंबर के पहले शुरू नहीं होगा। यानी नई नीति के बाद ही रेत की सप्लाई तय हो पाएगी। रेत की कमी से इन प्रोजेक्ट के पूरे होने में डेढ़ साल तक ही देरी होगी, जिसका खमियाजा आम जनता को भुगतना होगा। 

40 से 45 हजार रु. में मिल रहा रेत का ट्रक 
  • आठ दिन पहले 800 घनफीट रेत के ट्रक पर रॉयल्टी 6000 रुपए ली जा रही थी। अब 500 घनफीट रेत आ रही है और रॉयल्टी के 9000 रुपए वसूले जा रहे हैं। 
  • भोपाल में एक ट्रक रेत (800 घन फीट) की कीमत 28 रु. प्रति घनफीट के हिसाब से 22400 रुपए थी, जो 25 हजार रुपए तक मिल रही थी। अब रेत की मात्रा 800 घनफीट से घटकर 500 घनफीट रह गई है और रॉयल्टी के 3000 रुपए बढ़ा दिए गए हैं। ऐसी स्थिति में रेत का ट्रक 40 से 45 हजार रुपए में मिल रहा है। 
  • भोपाल में रोज 500 ट्रक रेत अा रही है। यानी कालाबाजारी में 1 करोड़ रु. का फायदा। इसके अलावा 300 घनफीट रेत कम आ रही है। यानी खरीदारों को रोज 42 लाख का घाटा। कालाबाजारी कर मुनाफे की यह राशि भोपाल में ही 1.50 से 2 करोड़ रु. प्रतिदिन है। 
     
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