दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को एक गुरुवार के मामले पर सुनाई करते हुए कहा है कि जब कोई रिलेशनशिप टूटती है तो महिलाएं आपसी सहमति से बनाए गए अपने शारीरिक संबंधों को बलात्कार बताने लगती हैं।
कोर्ट ने एक सरकारी कर्मचारी पर बलात्कार के आरोप से बरी करते हुए ये फैसला सुनाया। जज प्रतिभा रानी ने 29 वर्षीय महिला की अपील खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। महिला ने हाल ही में अपने पति के खिलाफ घरेलू हिंसा का एक मामला दायर करते हुए बलात्कार के एक मामले में उसके खिलाफ अभियोजन की मांग की थी। महिला ने बलात्कार का यह मामला इस व्यक्ति से 2015 में शादी करने से पहले दर्ज कराया था।
2016 में निचली कोर्ट ने फैसला महिला के खिलाफ सुनाया था जिसके बाद उसने उच्च न्यायलय में फैसले को चुनौती। यहां भी फैसला महिला के खिलाफ आया। अदालत ने कहा कि इसने कई मामलों में कहा है कि दो लोग अपनी इच्छा और पसंद से आपसी शारीरिक संबंध बनाते हैं और जब किसी कारण से संबंध टूट जाता है तब महिलाएं निजी प्रतिशोध के औजार के तौर पर कानून का इस्तेमाल करती हैं।
न्यायाधीश प्रतिभा रानी ने अपने फैसले में कहा, “वो गुस्से और हताशा के कारण सहमति के संबंधों को बलात्कार बता देती हैं इसलिए इस कानून का मूल मकसद ही कुंद हो जाता है। बलात्कार और सहमति से बने शारिरिक संबंध के बीच साफ विभाजन रेखा होनी चाहिए, खासकर तब जब मामला शादी का झांसा देकर बलात्कार करने से जुड़ा हो।”
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