आज जागेंगे भगवान, देव प्रबोधिनी एकादशी 31अक्टूबर पर विशेष, एकादशी देव प्रबोधिनी, देव उठनी, देवोत्थानी या छोटी दीपावली के नाम से भी जानी जाती है।
सतना। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार चार माह की शयन अवस्था को त्याग कर कार्तिक माह की एकादशी को भगवान विष्णु जागते हैं, जिस कारण यह एकादशी देव प्रबोधिनी, देव उठनी, देवोत्थानी या छोटी दीपावली के नाम से भी जानी जाती है। पौराणिक जानकारों के अनुसार वर्ष की दो एकादशी तिथियां अत्यंत महत्वपूर्ण मानी गई है। देव शयनी एकादशी एवं देव उठनी एकादशी। मान्यता है कि भगवान विष्णु दैत्य शंखासुर को परास्त करने के बाद अत्यधिक थकान होने के कारण विश्राम के लिए क्षीरसागर में शेषशैया पर सो जाते हैं, यह तिथि देवशयनी एकादशी के नाम से प्रसिद्ध है। इसके 4 माह पश्चात कार्तिक शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु जागृत होते हैं।
सुप्त पड़े मंगल मुहूर्त का आरंभ जिसे देव उठनी या हरि बोधनी एकादशी भी कहा जाता है। देव प्रबोधिनी एकादशी के साथ ही सुप्त पड़े मंगल मुहूर्त का आरंभ हो जाता है। भगवान विष्णु के साथ ही सुप्त पड़े हुए शुभ मुहूर्त भी जागृत होते उठते हैं, अर्थात विवाह, उपनयन, गृह प्रवेश, देव प्रतिष्ठा, सगाई, शिलान्यास आदि मुहूर्तों का श्रीगणेश भी इसी दिन से होने लगता है।
ऐसे करें छोटी दीपावली की पूजा ज्योतिषी राजेश साहनी के अनुसार 30 अक्टूबर 2017 को एकादशी तिथि सायं 07:03 बजे से प्रारंभ हो जाएगी जो 31 अक्टूबर को सायं 06:55 मिनट तक व्याप्त रहेगी। 31 अक्टूबर मंगलवार को, उदया तिथि एकादशी एवं द्वादशी युक्त एकादशी में वैष्णव जनों द्वारा देव प्रबोधनी एकादशी का पर्व मनाया जाएगा। एकादशी का पर्व इस वर्ष पूर्वा भाद्र नक्षत्र एवं ध्रुव योग में मनाया जाएगा जो कि अत्यंत शुभ है। इसी दिन तुलसी विवाह संपन्न होगा। कुल परंपरा अनुसार कई जगह द्वादशी तिथि में भी तुलसी विवाह किया जाता है।
ऐसे जगाएं भगवान को
राम अर्चन चन्द्रिका के अनुसार इस दिन घंटे एवं घंटियां बजाकर भगवान को जागृत करना चाहिए। देवप्रबोधनी एकादशी के दिन गन्ने का मंडप सजाकर मंडप के अंदर विधिवत रूप से भगवान विष्णु की षोडशोपचार पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से मांगलिक कार्यों में आने वाली बाधा दूर होती है और वर्ष सुखमय व्यतीत होता है।
देवप्रबोधनी एकादशी के दिन निर्जला व्रत रखकर विष्णु भगवान की पूजा तथा विष्णु सहनिाम का पाठ करना चाहिए। देवप्रबोधिनी एकादशी पर भगवान विष्णु को धूप, दीप, नैवेद्य, फूल, गंध, चंदन, फल और अघ्र्य आदि अर्पित करें। भगवान की पूजा करके घंटा, शंख, मृदंग आदि वाद्य यंत्रों के साथ भगवान को जागृत करें।
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