भारत की पहली स्वतंत्रता संग्राम सेनानी दंपती जो इकलौते बेटे से नहीं कराना चाहते अंतिम संस्कार, जानिए पूरी कहानी
रिश्तों का दर्द: अपनों से हारा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी दंपती, कहा, जीवन के अंतिम पड़ाव पर महसूसकर रहे असुरक्षा
रीवा। बचपन से लेकर जवानी तक स्वतंत्रता संग्राम की अलख जगाने वाले अब जीवन के अंतिम पड़ाव पर अपनी ही संतान से हार गए। जिस बेटे पर अपना भविष्य देखते रहे वही पराया लगने लगा है। रिश्ते को लेकर मन में ऐसी पीड़ा उठी कि कोई नाता ही नहीं रखना चाहते। इस कारण शपथ के साथ अंतिम इच्छा पत्र लिख एसडीएम को सौंपा है। उसमें कहा है कि अपने पुत्र से वह कोई संबंध नहीं रखना चाहते।
यह दर्द है उस स्वतंत्रता संग्राम सेनानी दंपती का, जिसे शहर में सम्मान मिलता रहा है। शपथ पत्र देकर संग्राम सेनानी दंपती वीरेन्द्र प्रताप सिंह (93) और उनकी पत्नी इंदिरा सिंह (88) निवासी खुटेही ने बताया, वह अपने पुत्र डॉ. अशोक प्रताप सिंह के दुव्र्यवहार और धमकियों से परेशान हो चुके हैं। वह बार-बार धमकी दे रहा है कि मुखाग्नि नहीं देंगे। बेटे से तंग दंपती ने स्वयं उसे इस दायित्व से मुक्त करने का सोचा। उन्होंने अंतिम इच्छा पत्र में लिखा कि उनके अंतिम संस्कार से जुड़े क्रिया-कर्म में पुत्र का कोई अधिकार नहीं रहेगा। बेटा उनकी अर्थी को भी हाथ भी नहीं लगाए।
भरण-पोषण का आवेदन निरस्त
माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण तथा कल्याण अधिनियम 2007 व 2009 के प्रावधान अनुसार एसडीएम कोर्ट में आवेदन लगाया गया था। वहां पर आवेदकों के पुत्र की ओर से तर्क दिया गया कि दोनों स्वतंत्रता सेनानी हैं। पेंशन भी प्राप्त कर रहे हैं। इसके अलावा अन्य कई तर्क दिए गए। इस पर एसडीएम ने उक्त प्रकरण को समाप्त करने का आदेश जारी कर दिया। अन्य सेनानियों ने बताया, वह दुव्र्यवहार और प्रताडऩा से आहत हैं। लेकिन, एसडीएम ने नियमों में उलझाने का प्रयास किया है। पुत्र पर किसी तरह की कार्रवाई का आदेश नहीं दिया गया है।
चल रहा मुकदमा
स्वतंत्रता सेनानी दंपती का इकलौते बेटे के साथ संपत्ति के स्वामित्व को लेकर विवाद चल रहा है। दंपती का आरोप है, सुभाष तिराहे के शॉपिंग कॉम्प्लेक्स के साथ ही अन्य कई संपत्तियों पर उनके बेटे ने जबरिया कब्जा कर रखा है। जबकि वह एक हिस्सा पुत्री और एक स्वयं के लिए लेना चाह रहे हैं।
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