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अराजकता के भंवर में फंसा प्रशासन


रीवा | अराजकता के भॅवर में जिले का प्रशासन उलझ गया है। जिले भर से एकत्रित भूमिहीनों ने सारी प्रशासनिक गतिविधियां ठप कर रखी हैं। प्रशासन की तमाम समझाइश और जायज मांगों को मान लिए जाने के बाद भी सैकड़ों की संख्या में डटे आदिवासी महिला-पुरुष, बच्चे कलेक्ट्रेट का मुहाना छोड़ने तैयार नहीं। आवास और खेती के लिए जमीन मांगने वाले भूमिहीनों का यह आंदोलन सियासी महत्वाकांक्षा पूरी करने की सीढ़ी बनता जा रहा है। विडम्बना की बात यह है कि मंदसौर गोलीकाण्ड के बाद उपजे आक्रोश के मद्देनजर प्रशासन के हाथ बांध दिए गए हैं, लिहाजा जिद पर अड़े प्रदर्शनकारियों के विरुद्ध प्रशासन प्रतिबंधात्मक कार्यवाही करने का साहस नहीं दिखा पा रहा है।
दो दिन से कलेक्ट्रेट गेट में डेरा जमाए दलित-आदिवासी 
गौरतलब है कि तीन माह पूर्व इन्हीं मांगों को लेकर 24 घण्टे तक प्रदर्शन करने वाले भूमिहीन आदिवासी एक बार फिर से अपना आंदोलन तेज कर दिए हैं। सोमवार से कलेक्ट्रेट का घेराव कर रहे इन आदिवासियों को समझा पाना प्रशासन के लिए टेढ़ी खीर बनता जा रहा है। मंगलवार की देर रात तक यह कलेक्ट्रेट गेट पर अपना डेरा जमाए रहे, जिन्हें समझाने में जिला प्रशासन विफल रहा है। बताया गया है कि पांच एकड़ की भूमि एवं आवास के लिए जमीन मांगने वाले आंदोलनकारियों को जिला प्रशासन द्वारा आश्वासन दिया जा चुका है। बावजूद यह कलेक्ट्रेट छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं। ऐसे में जिला प्रशासन के अधिकारी भी किसी नतीजे तक नहीं पहुंच सके हैं।
दे रहे सियासी रंग
सूत्रों का कहना है कि जिन दलित आदिवासी महासंघ के बैनर तले भूमिहीन आदिवासी मजदूरों को सामने कर प्रदर्शन किया जा रहा है, उससे यह साफ जाहिर हो रहा है कि सियासी रंग देने के लिए इस तरह के आंदोलन चलाए जा रहे हैं। हालांकि जिला प्रशासन के पास भी ऐसे लोगों की पूरी लिस्ट है परंतु हाल ही में हुए मंदसौर काण्ड के बाद किसी नतीजे पर पहुंच पाने में उसके हाथ बंधे हुए हैं। वहीं आंदोलनरत भूमिहीन मजदूरों की अगुआई करने वाले लोग उन्हें आक्रोशित कर यह साबित करने में तुले हुए हैं कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं, तब तक वह कलेक्ट्रेट गेट का दरवाजा नहीं छोड़ेंगे इसके लिए चाहे एक सप्ताह का समय लग जाए।
मांगें ऐसी जो पूरी कर पाना मुश्किल
भूमिहीन आंदोलनरत आदिवासियों ने जो मांग जिला प्रशासन के समक्ष रखी हैं उसे पूरा कर पाना मुश्किल लग रहा है। बता दें कि जिले में सरकारी जमीन इतनी नहीं बची है जिसमें इन लोगों को पांच एकड़ भूमि का पट्टा दिया जा सके। बहरहाल जिला प्रशासन ने आंदोलनकारियों की मांगों को देखते हुए सभी पटवारी, आरआई एवं तहसीलदारों को यह निर्देशित किए हैं कि ग्राम पंचायत स्तर में जो जमीनें शासकीय बची हुई हैं, उनको चिन्हित कर उसकी सूची उपलब्ध कराएं ताकि इन भूमिहीनों को जमीन का पट्टा दिया जा सके। जिला कलेक्टर का प्रभार संभाल रहे नगर निगम आयुक्त सौरभ सुमन का कहना है कि तीन माह पूर्व किए गए आंदोलन के बाद प्रशासन द्वारा मांगों को सूचीबद्ध कर निराकरण करने की कोशिश की जा रही है।
सरकारी जमीनों को चिन्हित किया जा रहा है। शासकीय तंत्र को इस दिशा में काम करने के लिए मुस्तैद कर दिया गया है। जमीन उपलब्ध होने के बाद इन्हें जमीनों का पट्टा दिया जाएगा। शासन की मंशा भी यही है कि भूमिहीनों को पट्टा दिया जाए। चौंकाने वाली बात यह है कि एक तरफ जहां जिला प्रशासन भूमिहीन आंदोलनकारियों को भूमि के पट्टे देने की बात कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ जिले में शासकीय भूमियों पर ज्यादातर रकबे में अतिक्रमणकारियों द्वारा कब्जा किया जा चुका है। ऐसे में यह कह पाना मुश्किल होगा कि भूमिहीन हरिजन आदिवासियों को पांच एकड़ शासकीय भूमि का पट्टा दिया जाएगा।

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