तीन शुभ योगों में होगा होलिका दहन, तैयारी जोरों पर, रंगों और पिचकारी की दुकानों से सजे बाजार, एक मार्च रात 7.40 बजे के हैं शुभ मुहूर्त
रीवा। प्रेम और भाईचारे का पर्व होली की तैयारी जोरों पर है। बाजार रंगों और पिचकारी की दुकानों से सज गए हैं। मिष्ठान भंडारों पर तरह-तरह की मिठाईयां महकने लगी हैं। होलिका दहन फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा, प्रदोष काल और भद्रा रहित अवधि में एक मार्च गुरुवार की रात होगा। तीन योग बड़े ही शुभकारी हैं। पूर्णिमा पूरे दिन व्याप्त रहेगी। शाम को प्रदोष काल रहेगा और 7 बजकर 40 मिनट के बाद भद्रा रहित अवधि होगी। ज्योतिषी राजेश साहनी के अनुसार होलिका दहन में मुहूर्त का चयन महत्वपूर्ण है।
गलत मुहूर्त के चयन से पूजा के लाभ से वंचित होना पड़ता है। होलिदा दहन 1 मार्च को रात 7.40 बजे भद्रा समाप्ति के बाद किया जाना शास्त्रीय मान्यताओं के अनुकूल होगा। उल्लेखनीय है कि होलिका दहन का सर्वाधिक प्रशस्त मुहूर्त प्रदोष काल है लेकिन प्रदोष काल में भद्रा का साया रहेगा।ऐसी स्थिति में भद्रा मुख का त्याग कर होलिका दहन किया जाएगा। दो मार्च को होली के रंगों से लोग सराबोर होंगे। पूर्णिमा तिथि प्रारंभ 1 मार्च को सुबह 8.57 बजे प्रारंभ होगी जो 2 मार्च को 6.21 बजे सुबह समाप्त होगी।
होलिका दहन के ये शुभ मुहूर्त
-1 मार्च को सायं 6.45 बजे से 8 बजे तक भद्रा मुख के पश्चात प्रदोष काल एवं अमृत चौघडिय़ा में। -1 मार्च को सायं 7.40 बजे से 9.00 बजे तक भद्रा के पश्चात चौघडिय़ा में सर्वाधिक शुभ मुहूर्त। -महानिशीथ काल तंत्र साधनाओं एवं पूजन को 1 मार्च को रात 11.40 बजे से 12.55 बजे के मध्य।
ये हैं होली से जुड़ी कथाएं
-होली का वर्तमान स्वरूप हिरणकश्यपु की बहन होलिका द्वारा भक्त प्रहलाद को जलाकर मारने के प्रयास में और स्वाहा होने के साथ श्रीहरि के भक्त प्रहलाद के बच जाने की घटना पर आधारित है। -पौराणिक आख्यानों के अनुसार देवाधिदेव महादेव ने तपस्या में बाधा डालने पर कामदेव को अपनी तीसरी आंख खोलकर उसे अग्नि से इसी दिन भस्म किया था। -भविष्य पुराण के अनुसार नारद के आग्रह पर युधिष्ठिर ने इस त्यौहार को प्रारंभ कराया था। होली को ‘नावनन्नेष्टि यज्ञ पर्व’ भी कहा जाता है। रवि की फ सल इस अवधि में खेतों में तैयार हो जाती है। इस अन्न को ‘होला’ कहते हैं जिसे होलिका यज्ञ में हवन कर प्रसाद के रूप में खाया जाता है।
कैसे करें होलिका दहन, जानें
होलिका का दहन एक संवत की समाप्ति का ***** है और नए संवत के प्रवेश का प्रतीक भी। फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि होलिका दहन के लिए प्रशस्त मानी गई है। होलिका दहन से पूर्व शुभ मुहूर्त में होलिका की पूजा करने का विधान है। होलिका के पूजन में रोली आदि पूजन सामग्री के अतिरिक्त गोबर के बने हुए ‘बडक़ुलों’ का विशेष महत्व है। गंध, अक्षत, पुष्प, मूंग, हल्दी, श्रीफ ल एवं बडक़ुल होलिका में अर्पित करते हुए उसके चारों और कच्चा सूत बांधना चाहिए। तत्पश्चात होली की तीन परिक्रमा करते हुए एक लोटा जल होलिका के समीप चढ़ा देना चाहिए। होलिका दहन के पश्चात होलिका में कच्चे आम, नारियल, सप्तधान्य एवं नई फसल आदि वस्तुओं की आहुति दी जानी चाहिए। होलिका के समक्ष हाथ जोडक़र अपनी मनोकामनाएं मानी जानी चाहिए।
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